फिलीस्तीन ने गाजा स्ट्रिप के एक समुद्र तट पर सोमवार को उस नन्हे से बच्चे अयलान कुर्दी को रेत मूर्तिकला के रूप में श्रद्धांजलि अर्पित की, जो सीरिया युद्ध से भागते वक्त डूब गया था।
लोगों ने वैसे ही लाल और नीले रंग के कपड़ों के साथ उसी स्थति में लेट कर एलान कुर्दी को श्रद्धांजलि अर्पित की ।
आपको बता दें जब अयलान की तस्वीर ली गयी तब उसका शरीर बोडरम, जो की तुर्की के मुख्य पर्यटक रिसॉर्ट में से एक है उसके पास के ही रेत पर मृत अवस्था में मिला था जिसमें उसका चेहरा नीचे की ओर झुका था।
लगभग 30 लोगों ने 20 मिनट के लिए रेत में निहित चेहरा नीचे कर उसी रंग के कपड़े पेहेन कर श्रद्धांजलि देने के लिए भाग लिया।
इससे पहले भी दुनिया भर से कई लोगों ने अयलान कुर्दी को अपने-अपने अद्भुत तरीको चित्रो के माध्यम से श्रद्धांजलि अर्पित की थी।
लगभग दो सप्ताह से भारतीय मीडिया जगत में इंद्राणी मुखर्जी की खबरें जोरों पर दिखाई जा रही हैं। जिसके कारण कई बुद्धिजीवियों ने टीवी चैनलों की इस भटकी हुई प्राथमिकता पर सोशल मीडिया के जरिए अपनी भावनाओं को व्यक्त भी किया है.
इन टीवी चैनलों ने इंद्राणी मुखर्जी की खबरें परत दर परत दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, किस प्रकार इंद्राणी ने अपनी बेटी की हत्या की जिसे पहले बहन कहा जा रहा था, वो भी ऐसे समय जब पूरा गुजरात हिंसा की आग में झुलस रहा था।
इतना ही नहीं, हद तो तब हो गई जब इन चैनलों पर हेडलाइंस ये चलने लगे कि ‘इंद्राणी ने सैंडविच खाया , इंद्राणी खार पुलिस स्टेशन पहुंची, मुंबई पुलिस कमिश्नर खार पुलिस स्टेशन पहुंचे, फिर वह खार पुलिस स्टेशन से बाहर गए और भी बहुत कुछ। मानो आप खबर नहीं क्राइम थ्रिलर की रनिंग कमेंटरी सुन रहे हों। एक टीवी संपादक ने मुझे ट्विटर के जरिए बताया कि गुजरात औऱ इंद्राणी से भी महत्वपूर्ण खबर सीरियाई संकट है तो क्या उन की सारी कवरेज सीरिया पर होनी चाहिए?
इस तरह के बेतुका तर्क का क्या उत्तर दिया जाए। उनके तर्क की अनुसार खबर का चयन उस की महत्वता पर नहीं बल्कि ग्लैमर, सनसनी फैलाने वाले तत्त्व और अनावश्यक नाटक पर होना चाहिए।
मैंने इससे पहले भी लिखा था कि क्या इंद्राणी मुखर्जी की कहानी गुजरात हिंसा से भी बड़ी खबर थी जबकि गुजरात पुलिस का भयावह चेहरा सीसीटीवी कैमरे मैं क़ैद होकर पूरी दुनिया के सामने आ गया था। क्या हमारी पत्रकारिता का स्तर इस हद तक गिर गया है की अब हमारे पास लोगों को दिखाने केलिए सिर्फ़ ये बचा है कि एक पूर्व स्टार इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी की पत्नी सैंडविच खाती हैं या फिर कुछ और?
वो भी ऐसे समय जब देश के पूर्वी और उत्तर-पूर्वी भारत का एक बड़ा भाग भीषण बाढ़ की चपेट में है। केवल असम में ही 50 लोगों की जानें जा चुकी हैं, पंद्रह लाख लोग इस से प्रभावित हुए हैं और दो लाख लोगों को इस समय कैंप में रहना पड़ रहा है। उधर मणिपुर में प्रांतवाद के नाम पर भड़के प्रदर्शनकारियों ने अपने निर्वाचित प्रतिनिधियों के घरों को आग के हवाले कर दिए, इस हिंसा में आठ लोग मारे भी गए। इतना ही नहीं भारत के दक्षिणी भाग में ख्यातिप्राप्त और बुद्धिवादी विचारक एक विद्वान डॉ. मल्लेसपा कलबुर्गी को मार डाला गया फिर इन सब के बीच महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में भयावह सूखा का आलम ये है की सिर्फ पिछले आठ महीनों में यहां 628 लोगों की जान जा चुकी हैं।
लेकिन इन कहानियों का मीडिया बिरादरी के बीच कोई खरीदार नहीं लगता। कितना अच्छा होता यदि ‘इंद्राणी ने सैंडविच खाया’ या नहीं की जगह अगर मीडिया खास कर न्यूज चैनल में मेरे दोस्त ये भी दिखाते कि मनीषा या उसके पाँच बच्चों ने खाना खाया या नहीं तो शायद हमारी छोटी से कोशिशों से आज किसी महिला को अपने बच्चों को भूख से बिलकते देखने की शर्मिन्गी से जान न गंवानी पड़ती।
रक्षाबंधन के दिन जब देश भर में भाइ अपनी बहनों की रक्षा करने के लिए अपनी प्रतिज्ञा का नवीकरण कर रहे थे तब महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में एक असहाय 40 वर्षीय महिला किसान मनीषा गटकल खुद को आग लगाने के लिए अपने उपर मिट्टी का तेल डाल रही थी। जो शायद भारत में किसानों द्वारा किए जाने वाले आत्महत्या की चक्र में पहली महिला बन गई।
आतंकवादी की परिभाषा अलग अलग समय पर अलग अलग होता है और सजा भी अलग अलग होता है। क़ानून सब के लिए बराबर है इस बात से किसी को इंकार नहीं, परन्तु इस पर अमल व्यक्ति विशेष, जाती विशेष, धर्म विशेष देख कर ही होता है। लेहाज़ा यह कहना की हर आतंकवादी को फांसी दो, आँख में पट्टी बंधी हुई न्यायिक व्यवस्था को चुनौती के सामान होगा। फांसी रुके या न रुके, आतंकवाद ज़रूर रुकना चाहिए और यही सभी हिन्दुस्तानी का लक्ष होना चाहिए। जय हिन्द
दुनिया मैं बहुत कम ही लोग होंगे जो अपने मन से किसी धर्म को अपनाये होंगे , बाक़ी लोग तो इस लिए हिन्दू ,मुसलमान, ईसाई ,सिख हैं क्योँ की इनके बाप ,दादा हिन्दू, मुसलमान ,ईसाई, सिख थे।
अगर मनुस्मृति को फिर हिंदुओं का कानून बना दिया जाये तो सभी दलित सिर्फ मैला साफ़ करने के लायक रहेंगे। दलित न वेद् सुन पायेगा और न मंदिर मैं पूजा। आरएसएस उसी मनुस्मृति के कानून को मानता है।
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