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Punarjanam: A Poem in Library and Information Science

पुनर्जन्म

मरघट जैसे पुस्कालय की
कब्रगाह सरीखी शेल्फ ,
जिसमे बरसों ......
ठोस जिल्द के ताबूत में
ममी की तरह रखी
अनछुई
मुर्दा किताब ,
जी उठती है अचानक
दो हाथों की ऊष्मा पाकर ,
सांस लेने लगते हैं पृष्ठ
अनायास
उँगलियों का स्पर्श मिलते ही ,
धड़कने लगते हैं शब्द
घूमती हुई
आँख की पुतलियों के साथ ,
बड़ी फुर्ती से रंग भरने लगता है
हर दृश्य में
ज़ेहन का चित्रकार
और चहल कदमी करने लगते हैं
पन्नों से निकल कर किरदार,
और अन्तः ...
गूंजने लगती हैं
आवाजें भी,
कानों में सभी कुछ
बोलने लगती है
एक गूंगी किताब |
यह सब कुछ अचानक हो जाता है
एक निर्जीव पुस्तक के साथ ....
लौट आती है उसकी आत्मा
एक संजीदा पाठक
मिलते ही
अकस्मात......!!
- संध्या सिंह

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shuru ki panktio me badlaw ki jarurat h

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